रिपोर्टर अभिषेक ठाकुर
खोदावंदपुर,बेगुसराय।
कृषि विज्ञान केन्द्र बेगुसराय में बुधवार को फसलों में होने वाली बीमारियों और उसके उपाय के संबंध में जानकारी देते हुए कहा वरीय वैज्ञानिक डॉक्टर राम पाल ने बताया आलू की खेती करने वाले किसानों का आलू का पौधा लगभग 35 से 40 दिनों का हो गया है और जो किसान भाई समय पर आलू की बुवाई किए हैं उनके खेतों में आलू का कंद बन्ना शुरू हो चुका होगा कुछ जगहों अगेती झुलसा का प्रकोप हो रहा है या होने की आशंका है यह बीमारी का आक्रमण आलू के कंद बनने के साथ ही होने लगता है यह पीछे पीछेती झुलसा से पहले पौधे के युवा अवस्था में ही लग जाता है इसकी पहचान यह है कि यह बीमारी मिट्टी के नजदीक वाली पत्तियां के पास पहले आक्रमण करता है
कृषि विज्ञान केन्द्र बेगुसराय में बुधवार को फसलों में होने वाली बीमारियों और उसके उपाय के संबंध में जानकारी देते हुए कहा वरीय वैज्ञानिक डॉक्टर राम पाल ने बताया आलू की खेती करने वाले किसानों का आलू का पौधा लगभग 35 से 40 दिनों का हो गया है और जो किसान भाई समय पर आलू की बुवाई किए हैं उनके खेतों में आलू का कंद बन्ना शुरू हो चुका होगा कुछ जगहों अगेती झुलसा का प्रकोप हो रहा है या होने की आशंका है यह बीमारी का आक्रमण आलू के कंद बनने के साथ ही होने लगता है यह पीछे पीछेती झुलसा से पहले पौधे के युवा अवस्था में ही लग जाता है इसकी पहचान यह है कि यह बीमारी मिट्टी के नजदीक वाली पत्तियां के पास पहले आक्रमण करता है
जो यह फैैल कर ऊपर की ओर बढ़ने लगता है इस बीमारी में पत्तियों पर बिखरे हुए छोटे-छोटे हल्का भूरा रंग का धब्बा बनने लगता है जिसके चारों ओर केंद्रीय लकीरे बनने लगती है यह अगेती झुलसा का एक अलग पहचान है धब्बे के चारों ओर हल्का पीला हरा होता है जो बढ़ने के साथ फैलता जाता है आद्र युक्त मौसम में यह एक दूसरे से मिलकर बड़े हो जाते हैं तथा आक्रांत स्थिति में पौधे की पत्तियों को गिराने लग जाते हैं
इसका असर पौधे के तना पर भी पड़ता है जो भूरा से काला होकर कमजोर हो जाता है पौधे को नुकसान पहुंचाता है इस इस बीमारी के फैलने के लिए अनुकूल तापमान 5 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड या औसत तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड है ठंड एवं सूखे मौसम में धब्बा के कठोर हो जाने के कारण पत्तियां मुड़ जाती है अगर इसका समय पर समुचित प्रबंधन नहीं किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसान भाई को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है इसके इसलिए कुछ जरूरी प्रबंधन कर इसके नुकसान से बचा जा सकता है ।
चुकी यह मिट्टी जनित रोग होता है इसलिए फसल चक्र बनाना बहुत ही लाभदायक होता है।किसान भाई अपने खेत को खरपतवार मुक्त एवं साफ सुथरा रखें।फसल कटनी के तुरंत बाद खेतों में पड़े अवशेष को निकाल कर नष्ट कर दें।अकरांत की स्थिति में होने पर डायथैैन M 45 @ 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से 10 दिन के अंतराल में चार से पांच बार छिड़काव करें ।
बलैटॉक्स 50 का छिड़काव 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें या जीनेव 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से 7 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
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